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बीए सेमेस्टर-3 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2647
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 मनोविज्ञान सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- समाज मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?

अथवा
समाज मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि की विवेचना कीजिए तथा इस विधि के गुण एवं सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. प्रयोगात्मक विधि पर टिप्पणी लिखिये।
2. प्रयोगात्मक विधि के गुण-दोषों की व्याख्या कीजिए।
3. प्रयोगात्मक विधि के चरण लिखिए।
4. प्रयोगात्मक विधि के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
5. प्रयोगात्मक विधि पर संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

समाज मनोविज्ञान में सामाजिक परिवेश में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। वैज्ञानिक रूप से अध्ययन करने के लिये इसमें कई विधियों का प्रयोग किया जाता है। समाज मनोविज्ञान का कार्यक्षेत्र बढ़ने के साथ इसकी कई विधियाँ विकसित हो रही हैं। समाज मनोविज्ञान में सबसे अधिक प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method) का प्रयोग किया जाता है। इस विधि का वर्णन निम्नलिखित है-

प्रयोगात्मक विधि का अर्थ
(Meaning of Experimental Method)

समाज मनोविज्ञान के अन्तर्गत प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार को समझने के लिये किया जाता है। प्रयोग में नियन्त्रित परिस्थिति (Controlled Situation) में व्यवहार का निरीक्षण (Observation) किया जाता है और इसकी विशिष्टता यह है कि इसकी पुनरावृत्ति की जा सकती है। प्रयोगात्मक विधि में सर्वप्रथम एक समस्या होती है। प्रयोगकर्ता (Experimenter) का प्रमुख ध्येय समस्या का समाधान करना होता है। समस्या समाधान करने के लिये उपकल्पना (Hypothesis) का निर्माण किया जाता है। उपकल्पना किसी समस्या का संभावित उत्तर होती है। प्रयोग विधि में उपकल्पना का सत्यापन किया जाता है। यदि उपकल्पना सही सिद्ध होती है तो उसे समस्या का समाधान मान लिया जाता है। उपकल्पना के असत्य होने पर उसे छोड़ देते हैं। इस परिस्थिति में समस्या के समाधान के लिये नई उपकल्पना का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार प्रयोगात्मक विधि द्वारा किसी समस्या का समाधान किया जाता है।

गार्डनर मरफी (Gardner Murphy) - ने अपने अनेक अध्ययनों में इस विधि का प्रयोग किया है। समाज मनोविज्ञान में इसका महत्वपूर्ण उपयोग है।

प्रयोगात्मक विधि के चरण
(Steps of Experimental Method)

प्रयोगात्मक विधि एक व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक विधि है। इसमें निम्नलिखित चरणों का प्रयोग किया जाता है

1. समस्या का उत्पन्न होना (Arise the Problem )  इस विधि का प्रथम चरण किसी समस्या का उत्पन्न होना है। उदाहरण के लिये, बाल अपराध एक समस्या है। सामान्य रूप से प्रत्येक समाज में इसके विभिन्न पक्षों का किसी न किसी रूप में हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

.2. प्राक्कल्पना तैयार करना (State the Hypothesis)  - किसी समस्या के संभावित उत्तर को प्राक्कल्पना कहते हैं। समस्या के निर्धारण के बाद प्राक्कल्पना बनायी जाती है। यह प्रयोगात्मक विधि का दूसरा चरण है।

3. परतन्त्र चर तथा स्वतन्त्र चर को अलग-अलग करना ( Discriminate the Dependent and Independent Variable)  प्राक्कल्पना के निर्धारण के पश्चात् स्वतन्त्र एवं परतन्त्र चरों को अलग-अलग किया जाता है।

4. चरों का नियंत्रण (Control the Variables)  प्रयोग के समय अनेक चर एवं कारक (Factor) परतन्त्र चर पर प्रभाव डालते हैं। ऐसे चरों को बहिरंग चर (Extraneous Variables) कहते हैं। प्रयोग विधि में इन बहरिंग चरों की नियन्त्रित किया जाता है।

5. परिणामों की व्याख्या ( Interpretation of the Results)  - यह प्रयोगात्मक विधि का बहुत ही महत्वपूर्ण चरण है। इसमें प्रयोगकर्ता प्रयोग से प्राप्त होने वाले परिणामों का विश्लेषण करता है।

6. उपकल्पना की जाँच (Verification of Hypothesis)  - यह प्रयोग विधि का अंतिम चरण है। प्रयोग से प्राप्त परिणामों की तुलना उपकल्पना से की जाती है। यदि प्रयोग से प्राप्त परिणाम और उपकल्पना में समानता होती है तो उपकल्पना को सत्य मान लिया जाता है।

समाज मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि के प्रकार
(Types of Experimental Method in Social Psychology)

समाज मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि का उपयोग निम्नलिखित दो रूपों में किया जाता है -

1. प्रयोगशाला प्रयोग विधि (Laboratory Experiment Method) : इस विधि में सामाजिक व्यवहार का अध्ययन करने के लिये प्रयोगशाला में प्रयोग करते हैं। इस विधि में एक सीमित संख्या में यादृच्छिक (Randomly) रूप से प्रयोज्यों (Subjects) का चयन किया जाता है। आवश्यकता के अनुसार इन्हें प्रयोगात्मक समूह ( Experimental Group ) तथा नियंत्रित समूह (Controlled Group) में बांट लेते हैं। स्वतन्त्र चर में जोड़-तोड़ करके परतन्त्र चर पर इसके प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

2. क्षेत्र प्रयोग विधि (Field Experiment Method) : यह विधि प्रयोगात्मक विधि की दूसरी उपविधि है। इस विधि का प्रयोग कुछ ऐसे सामाजिक व्यवहार के अध्ययन में करते हैं जिनका अध्ययन प्रयोगशाला में प्रयोग विधि की सहायता से नहीं कर सकते हैं जैसे राजनैतिक आन्दोलन, भीड़, अफवाह आदि सामाजिक समस्याएं। इस विधि में सामाजिक व्यवहार का अध्ययन प्रयोगशाला में न करके वास्तविक परिस्थति ( Real Situation) में करते हैं। प्रयोगकर्ता वास्तविक परिस्थति को स्वतन्त्र चर में जोड़-तोड़ (Manipulation) करके परतन्त्र चर पर उसके प्रभाव का अध्ययन करता है। इस वास्तविक परिस्थिति को मनोवैज्ञानिकों ने क्षेत्र (Field) कहा है, इसलिये इसे क्षेत्र प्रयोग विधि कहते हैं।

प्रयोगात्मक विधि के गुण
(Merits of Experimental Method)

प्रयोगात्मक शोध समाज मनोविज्ञान की एक महत्वपूर्ण विधि है। यह एक वैज्ञानिक विधि है तथा इसके द्वारा वैज्ञानिक निष्कर्ष प्राप्त होते हैं। इस विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं।

1. नियंत्रण (Control) : प्रयोगात्मक विधि में प्रयोगकर्ता स्वतन्त्र चर पर पर्याप्त नियंत्रण रखता है। इस नियंत्रण के कारण वह स्वतन्त्र चर का परिचालन तथा बहिरंग चरों (Extraneous Variables) के प्रभावों को रोक पाता है और वैध निष्कर्ष प्राप्त करता है। करलिंगर (Kerlinger, 1986) ने इसे शोध का प्रमुख गुण माना है।

2. यादृच्छिकरण (Randomization ) : प्रयोगात्मक विधि में यादृच्छिकरण का गुण पाया जाता है। यादृच्छिकरण की सहायता से प्रयोगकर्ता प्रयोज्यों का चयन करता है। यादृच्छिकरण की सहायता से चुने गये प्रयोज्य अपने समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं।

3. पुनरावृत्ति (Repetition ) : प्रयोगशाला में परिस्थितियों को नियंत्रित कर प्रयोग करते हैं। अतः किसी भी प्रयोग को उन्हीं परिस्थितियों में दोहराया जा सकता है और पहले से प्राप्त परिणामों की जांच की जा सकती है।

प्रयोगात्मक विधि के दोष या सीमाएँ
(Demertis or Limitation of Experimental Method)

1. कृत्रिमता (Artificiality) : समाज मनोविज्ञान में अध्ययन परिस्थिति प्रयोगकर्ता अपनी आवश्यकता के अनुसार उत्पन्न करता है। इस प्रकार वह वास्तविकता से अलग हो जाता. है और अध्ययन कृत्रिम बन जाते हैं। प्रयोगशाला प्रयोग (Laboratory Experiment) में यह दोष अधिक पाया जाता है क्योंकि इस प्रयोग विधि में कठोर नियंत्रण रखा जाता है।

2. सीमित क्षेत्र (Limited Scope) : प्रयोग विधि का क्षेत्र सीमित होता है क्योंकि कई प्रकार की समस्याओं का अध्ययन नियन्त्रित परिस्थिति में नहीं कर सकते हैं। प्रयोगशाला प्रयोग विधि में यह दोष अधिक है।

3. प्रयोज्यों के सहयोग की समस्या ( Problem of Co-operation of Subjects) : प्रयोगात्मक विधि में यह पाया जाता है कि प्रयोज्यों द्वारा प्रयोगकर्ता को पूर्ण सहयोग नहीं मिलता है। सहयोग के अभाव के कारण वैध निष्कर्ष नहीं प्राप्त कर सकते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र की व्याख्या करें।
  2. प्रश्न- सामाजिक व्यवहार के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  3. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिए। इसके अध्ययन की दो महत्वपूर्ण विधियों पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?
  5. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान की निरीक्षण विधि का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  6. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान में सर्वेक्षण विधि के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  7. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान में क्षेत्र अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार तथा गुण दोषों पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान को परिभाषित कीजिए। इसकी प्रयोगात्मक तथा अप्रयोगात्मक विधियों की विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- अन्तर- सांस्कृतिक शोध विधि क्या है? इसके गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान की आधुनिक विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- सामाजिक व्यवहार के अध्ययन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान के महत्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अर्ध-प्रयोगात्मक विधि का वर्णन कीजिये।
  14. प्रश्न- क्षेत्र अध्ययन विधि तथा प्रयोगशाला प्रयोग विधि का तुलनात्मक अध्ययन कीजिये।
  15. प्रश्न- समाजमिति विधि के गुण-दोष बताइये।
  16. प्रश्न- निरीक्षण विधि पर टिप्पणी लिखिये।
  17. प्रश्न- व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके स्वरूप को समझाइए।
  18. प्रश्न- प्रभावांकन के साधन की व्याख्या कीजिए तथा यह किस प्रकार व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण में सहायक है? स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- दूसरे व्यक्तियों के बारे में हमारे मूल्यांकन पर उस व्यक्ति के व्यवहार का क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए
  20. प्रश्न- व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण से आप क्या समझते हैं? यह जन्मजात है या अर्जित? विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- चित्रीकरण करना किसे कहते हैं?
  22. प्रश्न- अवचेतन प्रत्यक्षण किसे कहते हैं?
  23. प्रश्न- सामाजिक प्रत्यक्षण पर संस्कृति का क्या प्रभाव पड़ता है?
  24. प्रश्न- छवि निर्माण किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- आत्म प्रत्यक्षण किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- व्यक्ति प्रत्यक्षण में प्रत्यक्षणकर्ता के गुणों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- प्रत्यक्षपरक सुरक्षा किसे कहते हैं?
  28. प्रश्न- सामाजिक अनुभूति क्या है? सामाजिक अनुभूति का विकास कैसे होता है?
  29. प्रश्न- स्कीमा किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  30. प्रश्न- सामाजिक संज्ञानात्मक के तहत स्कीमा निर्धारण की प्रक्रिया कैसी होती है? व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- बर्नार्ड वीनर के गुणारोपण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- केली के सह परिवर्तन गुणारोपण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- क्या स्कीमा स्मृति को प्रभावित करता है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  34. प्रश्न- क्या सामाजिक अनुभूति में सांस्कृतिक मतभेद पाए जाते हैं?
  35. प्रश्न- स्कीम्स (Schemes) तथा स्कीमा (Schema) में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- मनोवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसके घटकों को स्पष्ट करते हुए इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- अभिवृत्ति निर्माण की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए अभिवृत्ति में परिवर्तन लाने के उपायों का वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- मनोवृत्ति परिवर्तन में हाईडर के संतुलन सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  39. प्रश्न- संज्ञानात्मक अंसवादिता से आप क्या समझते हैं? फेसटिंगर ने किस तरह से इसके द्वारा मनोवृत्ति परिवर्तन की व्याख्या की?
  40. प्रश्न- मनोवृत्ति की परिभाषा दीजिए। क्या इसका मापन संभव है? अभिवृत्ति मापन की किसी एक विधि की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- मनोवृत्ति मापन में लिकर्ट विधि का मूल्यांकन कीजिए।
  42. प्रश्न- मनोवृत्ति मापन में बोगार्डस विधि के महत्व का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- अभिवृत्ति मापन में शब्दार्थ विभेदक मापनी का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- अभिवृत्ति को परिभाषित कीजिए। अभिवृत्ति मापन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- मनोवृत्ति को परिभाषित कीजिए। मनोवृत्ति के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- अन्तर्वैयक्तिक आकर्षण क्या है? इसके स्वरूप तथा निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- अभिवृत्ति के क्या कार्य हैं? लिखिए।
  48. प्रश्न- अभिवृत्ति और प्रेरणाओं में अन्तर समझाइये।
  49. प्रश्न- अभिवृत्ति मापन की कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए।
  50. प्रश्न- थर्स्टन विधि तथा लिकर्ट विधि का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
  51. प्रश्न- उपलब्धि प्रेरक पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- अन्तर्वैयक्तिक आकर्षण में वैयक्तिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- “अन्तर्वैयक्तिक आकर्षण होने का एक मुख्य आधार समानता है।" विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- आक्रामकता को स्पष्ट कीजिए एवं इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- क्या आक्रामकता जन्मजात होती है? एक उपयुक्त सिद्धान्त द्वारा इसकी आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- कुंठा आक्रामकता सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- क्या आक्रामकता सामाजिक रूप से एक सीखा गया व्यवहार होता है? एक उपयुक्त सिद्धान्त द्वारा इसकी आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  58. प्रश्न- आक्रामकता के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- कुंठा-आक्रामकता सिद्धान्त को बताइए।
  60. प्रश्न- आक्रामकता को उकसाने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए। अपने उत्तर के पक्ष में प्रयोगात्मक साक्ष्य भी दें।
  61. प्रश्न- मानवीय आक्रामकता के वैयक्तिक तथा सामाजिक निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजोपकारी व्यवहार का अर्थ और इसके निर्धारकों पर एक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- प्रतिसामाजिक व्यवहार का स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइये।
  64. प्रश्न- सहायतापरक व्यवहार के सामाजिक व सांस्कृतिक निर्धारक का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- परोपकारी व्यवहार को किस प्रकार उन्नत बनाया जा सकता है?
  66. प्रश्न- सहायतापरक व्यवहार किसे कहते हैं?
  67. प्रश्न- सहायतापरक व्यवहार के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- अनुरूपता से क्या आशय है? अनुरूपता की प्रमुख विशेषताएँ बताते हुए इसको प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- अनुरूपता के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- पूर्वाग्रह की उपयुक्त परिभाषा दीजिये तथा इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। पूर्वाग्रह तथा विभेद में अन्तर बताइये।'
  71. प्रश्न- सामाजिक पूर्वाग्रहों की प्रवृत्ति की संक्षिप्त रूप में विवेचना कीजिए। इसके हानिकारक प्रभावों को किस प्रकार दूर किया जा सकता है? उदाहरण देकर अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये।
  72. प्रश्न- पूर्वाग्रह कम करने की तकनीकें बताइए।
  73. प्रश्न- पूर्वाग्रह से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं एवं स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- आज्ञापालन (Obedience) पर टिप्पणी लिखिये।
  75. प्रश्न- दर्शक प्रभाव किसे कहते हैं?
  76. प्रश्न- पूर्वाग्रह की प्रकृति एवं इसके संघटकों की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पूर्वाग्रह के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- पूर्वाग्रह के नकारात्मक प्रभाव का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- पूर्वाग्रह के विकास और सम्पोषण में निहित प्रमुख संज्ञानात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- पूर्वाग्रह एवं विभेदन को कम करने के लिये कुछ कार्यक्रमों की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- समूह समग्रता से आप क्या समझते हैं? समूह समग्रता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिये।
  82. प्रश्न- समूह मानदंड क्या है? यह किस प्रकार से समूह के लिए कार्य करते हैं?
  83. प्रश्न- समूह भूमिका किस प्रकार अपने सदस्यों के लिए कार्य करती है? स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- निवैयक्तिकता से आप क्या समझते हैं? प्रयोगात्मक अध्ययनों से निवैयक्तिकता की प्रक्रिया पर किस तरह का प्रकाश पड़ता है?
  85. प्रश्न- “सामाजिक सरलीकरण समूह प्रभाव का प्रमुख साधन है। व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- “निर्वैयक्तिता में व्यक्ति अपनी आत्म- अवगतता खो देता है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- समूह के प्रकार बताइये।
  88. प्रश्न- सामाजिक श्रमावनयन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों का उल्लेख कीजिए और इसे किस तरह से कम किया जा सकता है? विवेचना कीजिए।
  89. प्रश्न- आज्ञापालन (Obedience) पर टिप्पणी लिखिये।
  90. प्रश्न- समूह निर्णय पर टिप्पणी लिखिये।
  91. प्रश्न- सामाजिक श्रमावनयन पर टिप्पणी लिखिये।
  92. प्रश्न- समूह की संरचना पर टिप्पणी लिखिये।

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